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चीख़ता अलेप्पो

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दो महाशक्तियों   की लड़ाई में फंसा 6300 साल पुराना शहर अलेप्पो अब पूरी तरह से बर्बाद हो चुका है। कभी  सीरिया की फाइनेंशियल कैपिटल रहा अलेप्पो शहर  आज  दुनिया से मदद माँग रहा है।   अलेप्पो को महाशक्तियों ने आपस में बांट लिया है. कोई विद्रोहियों के साथ के नाम पर आतंकवादियों को फंड कर रहा है तो कोई  आतंकवाद को कुचलने के नाम पर सामान्य नागरिकों का कत्लेआम कर रहा  है ।   पांच साल से चल र हे ग्रह युद्ध  के बाद  से  यहां सरकारी फ़ौज का क़ब्ज़ा  है  लेकिन एक छोटे से पूर्वी हिस्से में फसे आम लोग आज चर्चा का विष्य हैं। यहाँ  बिना  सोचे समझे बमों की बरसात हुई है. अस्पताल ध्वस्त हैं. सड़कों पर घायल  लाशों की तरह बिछे हैं. बच्चे ,  औरतें सभी दुनिया से मदद की अपील कर रहे हैं.  दुनिया खामोश है. बीते एक महीने में  400  से अधिक नागरिक मारे गए हैं । संयुक्त   रा ष्ट्र में सीरिया पर हुई आपातकाल बैठक में जहाँ अमेरीका और रुस के राजदूतों  के  बीच तीख़ी बहस हुई वहीं दो दिन पहले पूर्वी अलेप्पो को खाली कराने का शुरू     हु आ काम अचानक शुक्रवार को रोक दिया गया।  संयुक्त राष्ट्र क
सोशल मीडिया और मैं आज सोशल मीडिया मेरे लिए एक ऐसा उपयोगी पलैटफोर्म बन गया है जिससे मैं अपने आप को समाज और देश-दुनिया की परीचित घटनाओं के साथ अपडेट रख सकता हूँ। लेकिन पहले ऐसा नही था। जब मैंने पहली बार इसके बारे में सुना तब सबने यही बोला कि , “ भाई, सारे दोस्त हैं इस पर खूब बातें करते हैं सब ” । बस फिर क्या था, मैं भी नए-नए माध्यमों से अपनी “ आई.डी. ” बनाता गया। लेकिन हाँ जाने-अनजाने इसने मेरी पढाई और मनोविज्ञानिक सोच पर असर तो डाला ही है। तभी हमेशा पढाई करने से पहले एक बार तो फेसबुक और वॅटसैप चैक करना आदत सी बन गयी थी। लेकिन आज ऐसा नही है। आज दोस्तों से गपशप करने के साथ-साथ सोशल मीडिया मुझे सामयिक घटनाओं में भी मुझे सक्षम रखता है। पहले टवीटर, ईन्सटाग्राम, ब्लोग, न्यूज ऐप जैसी चीजें । आज चाहे राजनीतिक भड़ास निकालनी हो या किसी फिल्म का प्रमोशन करना हो, सोशल मीडिया को सबसे पहले ही चुना जाता है।