ये काम, "काम" का नही!
आफिस के दो महीने में जो कुछ देखा, सीखा और जाना सब एक दम नया था और मैं सब इस लिए लिखना चाहता हूँ ताकि आगे आने वाले मेरे जूनियर्स पहले ही यह जान लें कि जैसा हम क्लासरूम में सोचते हैँ वैसा कभी होता नही है। ख़ैर मेरे आफिस ब्रेकअप की दूसरी “ बरसी ” है तो मैंने अपने दो कारण ज़ाहिर करने का फैसला किया है। ना चाहते हुए भी यह दोनों कारण पर्सनल ही हैं क्योंकि “ प्रोफेशनल इज़ पर्सनल ” । निजी इस नाते कि ये दोनों कारण मेरी निजी विचारधारा को चुनौति देते है। पहला कारण: इससे पहले वाले ब्लाग में। गुरू गोबिंद सिंह जी के 350वें प्रकाश उत्सव पर बंगला साहिब से दूसरा कारण : काम : कालेज के ढाई साल में मैंने लिखने, बोलने और पढने की अच्छी प्रैक्टिस की। तो ज़ाहिर सी बात अच्छे काम की ही उम्मीद थी। चैनल छोटा था तो उम्मीद और बढ़ गई। लेकिन मेरे शुभचिन्तकों ने मुझे एक ही सलाह दी की पहले एक बार ऐन्ट्री ले लो बाकी सब अपने आप हो जाएगा। मेरी ट्रेनिंग शुरू होने के तकरीबन एक हफ्ते बाद मुझे असाइनमेंट डेस्क पर शिफ्ट किया गया। काम अच्छा लगा लेकिन यहाँ लिखने का नाम था ही नही और बोलने वाला काम तो छोड़ ही