ये काम, "काम" का नही!



लिखना तो नही चाहता था लेकिन लिखे बिना रहा भी नही जा रहा। क्योंकि मैं सोशल मीडिया का एक्टिव यूज़र हूँ तो ज़ाहिर सी बात है कि ढिंढोरा पीटने का भी आदी हो चुका हूँ। मैं इस समय बेताब हूँ, बोर हूँ और बेहद आलसी हो चुका हूँ। और इन सभी आदतों पर काबू पाने के लिए लिखता रहता हूँ। यह लेख भी सीधा मेरी डायरी से आ रहा है। तो बात एक बार फिर आफिस की क्योंकि मैं मिस करता हूँ अपने उन बिज़ी डेज़ को। लेकिन कुछ कारणवश मुझे आफिस से "ब्रेकअप" तो करना ही पड़ा। और इसी पर मेरा यह ब्ला्ग। दो महीने में जो कुछ देखा, सीखा और जाना सब एक दम नया था और मैं सब इस लिए लिखना चाहता हूँ ताकि आगे आने वाले मेरे जूनियर्स पहले ही यह जान लें कि जैसा हम क्लासरूम में सोचते हैँ वैसा कभी होता नही है।

ख़ैर मेरे आफिस ब्रेकअप की दूसरी बरसी है तो मैंने अपने दो कारण ज़ाहिर करने का फैसला किया है। ना चाहते हुए भी यह दोनों कारण पर्सनल ही हैं क्योंकि प्रोफेशनल इज़ पर्सनल निजी इस नाते कि ये दोनों कारण मेरी निजी विचारधारा को चुनौति देते है।


पहला कारण: टी.आर.पी.: मुझे अभी भी याद है अपने फर्सट ईयर का दूसरा सप्ताह जब एक एन.डी.टी.वी के एंकर हमें पढ़ाने आए और आते ही उन्होंने यही पूछा की समाज को कौन-कौन बदलने आया है ? मेरे साथ-साथ आधे से ज्यादा क्लास ने हाथ खड़ा किया था। साहब हस दिए और कहने लगे कि जब काम करने लगो तो हमसे बात करना। सर से तो मिलना नही हो पाया लेकिन एक बात तो समझ आ गयी की बहुत से मीडिया चैनल सिर्फ एक चीज़ के लिए काम करते हैँ: टेलीविसन रेटिंग प्वाइंट्स यानि TRP.  सरल शब्दों में यह एक मापदंड है जो एक चैनल या कार्यकम्र की लोकप्रियता इंगित करती है जो सीधे-सीधे विज्ञापनदाताओं के लिए बहुत उपयोगी है और एक चैनल के लिए भी क्योंकि विज्ञापन ही राजस्व का एकमात्र साधन है। तो ज़ाहिर सी बात हर कोई तड़कता-भड़कता और बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने और बार-बार दिखाने में लगा रहता है। बस जैसे-तैसे फलाने चैनल से ज्यादा टी.आर.पी. आ जाए और हम भी सबसे तेज़ कहलाए जाएँ। समाज से हमें मतलब ही नही, हमें मतलब है ए.एन.आई. से, हमें मतलब है नेता लोगों से, हमें मतलब है चुनावों से। लेकिन ऐसा बिल्कुल नही है कि चैनल वाले सब अपने मरज़ी से करते हैँ, यहाँ भी अर्थशास्त्र का डिमान्ड-सप्लाई वाला फार्मूला लागू होता है। लोग पसंद करते है तभी चैनल बार-बार दिखाता है। खैर ऐसे बहुत से वाक्या हुए जब जन्ता की समस्या बताने के लिए आई काल्स को साफ-साफ नकार दिया जाता था। जो मुझे निराश कर देता था। कौन हे यहाँ समाज के लिए काम करने वाला ?

दूसरा कारण: जल्द ही अगले ब्लाग में.......

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