हरियाणा की सियासत और दिलों पर क्यों हावी बाबा राम रहीम ?

जब मैंने पहली बार संत बाबा गुरमीत राम रहीम सिंह इंसान का नाम सुना था तो ऐसा सेक्युलर नाम सुन के ही खुशी हो गई थी। लेकिन वो किसी ने कहा है ना कि नाम में क्या रखा है ? काम पता करने के बारे में सोचा तो महीनों बाद टी.वी. पर बाबा को गाना गाते सुन लिया। कुछ साल बाद घर के साथ वाले खाली प्लाट में सालों से पड़ी झाड़ियाँ अचानक साफ कर दी गई। देश में चल रहे तथाकथित निर्मल भारत अभियान से भी ज़बरदस्त सफाई तो मैंने बाबा के समर्थकों को करते हुए देखा। यहाँ मैं यह भी बता दूँ कि हरियाणा का होने के कारण, राम रहीम का यहाँ प्रचार ज्यादा ही है। देश के इसी हिस्से में प्रति वर्ग किलोमीटर सबसे ज्यादा बाबा हैं (पंजाब सहित)। कुछ साल बाद जब मैं दिल्ली कालेज में था तो ब्रेक में ढोल-गानों (और तिरंगों) के साथ डेरे के लोगों को जाते देखा। सभी बाबा की पहली फिल्म MSG के प्रचार में घूम रहे थे। बीच में एक-दो बार सफाई करते या फिल्म के प्रचार के लिए ही बाबा को देखा या सुना। और अब सीधा 16 अगस्त 2017 को जब पंचकुला में सज़ा के तारीख तय हुई। आगे जो कुछ हुआ आपके सामने है।

BABA RAM RAHIM IN SAFAI MAHAABHIYAN IN KARNAL
(SOURCE: www.derasachasauda.org)

बाबा को यौण शोषण मामले में  20 साल की सज़ा हो चुकी है। कुछ पुराने मामले भी तैयार हो रहे हैं।  अब पीता जी तो दादा जी बन के ही निकलेंगे ! ABP न्यूज़ के मुताबिक जब बाबा को सज़ा सुनाई जा रही थी तब उनकी आंखों से आँसू गिर रहे थे। सालों तक नेताओं और भक्तों से घिरे रहने वाले बाबा के कोर्ट के अंदर आंसू पोंछने वाला कोई नही था। 25 अगस्त को हिंसा में बने हालात से यह साफ है कि 2014 में बाबा के ही आर्शिवाद से बनी खट्टर सरकार डेरा सच्चा सौदा के समर्थकों के आगे ऩतमस्तक थी। और ऐसा पहली बार नही हुआ है कि किसी हरियाणा में राजनीतिक पार्टी से डेरे कि इतनी करीबी हो। 2002 में जब पीड़ित साधवी के पत्र सामने आए और लोकल अखबार में छपने के बाद पत्रकार छत्रपति की सिरसी में हत्या हुई, तो पंजाब-हरियाणा होई कोर्ट ने मामला CBI को सोंप दिया। इस फैसले के खिलाफ मौजूदा ईनेलो सरकार सुप्रीम कोर्ट तक चली गई। बाबा लोगों को अपनी पार्ट्री के लिए आकर्षित करने का सिलसिला शायद यहीं से शुरू हुआ। इसके बाद जब कांग्रेस की सरकार आई उसने तो 2008 में बाबा को Z प्लस सुरक्षा तक दे दी। 2014 के विधानसभा चुनाव में डेरे ने भाजपा को समर्थन देने का ऐलान कर दिया था। 2014 में हरियाणा की खट्टर सरकार को चंडीगढ़ तक पहुँचने में डेरा सिरसा ने मुख्य भूमिका निभाई थी। तब लोगो में एक बात आम हो गई थी कि हरियाणा में डेरा की जीत हुई है। भाजपा की नहीं।

HARYANA CM M.L. KHATTAR ALONG
WITH BABA RAM RAHIM IN KARNAL.
(SOURCE: www.derasachasauda.org)

खट्टर सरकार के इन तीन सालों में यह तीसरा मौका था जब अपने वोट बैंककी राजनीति की ख़ातिर सरकार ने तीसरी बार अपने हरियाणा को जलने दिया और सरेआम कानून व्यवस्था कि धज्जियाँ भी उड़ी। 2014 की बात है जब मैं कालेज में था। हिसार में कबीरपंथी बाबा रामपाल को गिरफतार करने के लिए अर्धसैनिक बल समेत पुलिस को 8 घंटे आश्रम के बाहर इन्तोज़ार करना पड़ा, तब जाकर ऊपर से आदेश मिले। यहाँ भी वोट बैंक की बात लागू है, 2014 में यहाँ के भी अनुयायी भाजपा के समर्थक थे। फिर 2016 में जातीय दंगों ने शहरों को जलाया। दंगों के बाद सरकार द्वारा ही बनाई गई प्रकाश सिंह कमेटी की रिपोर्ट (जो अब ठंडे बस्ते में है) को पढ़ेंगे तो आप यह पाएँगें कि जाट आंदोलन के वक्त किस तरह ऊपर से लेकर नीचे तक सब कुछ फेल था। स्थानिय पुलिस और अधिकारियों ने किस तरह अपनी जाति के बचाव के लिए दंगें होने दिए। यहाँ यह भी मालूम हो कि राज्य में पहली बार भाजपा से सी.एम बना वो भी पंजाबी बैल्ट से। तो जाहिर है कि यहाँ अपने 29% “नए वोटर्स का सरकार ख्याल रखना चाहती थी।

OB VAN ENGINEER OF NDTV BEING ATTACKED BY THE MOB IN PANCHKULA
(SOURCE: Facebook) 
लेकिन इस बार 2017 में जो कुछ पंचकुला में होना था उसके बारे में तो सरकार को सब मालूम था। समय, तारीक और स्थान सब निश्चित था, फिर भी किस तरह कठपुतली की तरह डेरे के लिए सरकार ने काम किया, 3 दिन तक लोगों को पंचकुला में आने दिया और धारा 144 के बारे में हाई कोर्ट को गुमराह किया। 24 अगस्त को हाईकोर्ट के डेरा समर्थकों को हटाने के आदेश के बावजूद सरकार ने बस अपील कर खानापूर्ती की। आप एक बार सोचिए कि अगर हरियाणा पंजाब HC की सरकार को लग रही फटकार और टिप्पणियां ना होती तो आप लोगों को मालूम ही नही हो पाता कि यह सरकारी तन्त्र किस तरह से इंसानों के लिए फेल रहा। जब पुलिस, अर्धसैनिक बल और आर्मी के पास पेलेट गन, बंदूकें और राइफल थी फिर भी पत्थरों का इस्तेमाल कर भीड़ को खदेड़ने की कोशिश की जा रही थी। साफ है कि सरकार और ड्यूटी मजिस्ट्रेट ने तोड़फोड़ और वाहन जलने का इन्तोज़ार किया और फिर शूटिंग के आदेश दिए गए। तब तक शहर के ऊपर काले धुँए का गुबार छा चुका था। मतलब साफ है कि समय पर आदेश नही दिए गए और भीड़तंत्र ने प्रजातंत्र को बर्बाद कर दिया
A journalist walks towards burning vehicles in Panchkula
(SOURCE: PTI)

अब भी होगा वही की सब शांत होने के बाद, 2-4 अधिकारियों को बर्ख़ास्त कर दिया जाएगा, सुर्खियां बन जाएंगी, एक आयोग का गठन होगा, आयोग की रिपोर्ट ठंडे बस्ते में चली जाएगी और नेता लोग एक बार फिर किसी नए बाबा के यहां वोट की भीख मांगते दिखेंगे। नतीजा यही होगा कि बाबा लोगों को लगता है कि वे कानून से ऊपर हैं क्योंकि सरकार उनके बस में है। अब भी कुछ बेहद ही खास मानसिकता के लोग यही कह रहे हैं कि बाबा को सज़ा तो बस हिन्दू धर्म और भारतीय संस्कृति के खिलाफ साज़िश है।
मेरा तो यही मानना है कि राजनीति में राजनीति होनी चाहिए, धर्म जब भी होगा वो खुद को राज्य संविधान और सामान्य कानून से ऊपर समझने का खेल हो जाएगा जिसके शिकार नेता नहीं होंगे, हम होंगे। क्योंकि दोने के बीच हम हैं, बलि के बकरे की तरह।






Comments

  1. Nice post Bhavey. Keep it up.
    Dera did do some humanitarian work but I believe that was just a cloak for the racket that was going underneath everything.

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  2. Bhai bhot achha likha h pdhte time boring nhi achha lga.
    Aur Shuruat to bhot hi achhi lgi.

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