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Showing posts from 2017

City with a Unique Sensation!

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Roads no matter how they are, they are always story. Some give rest to the tired feet, some make you  dream beneath the stars. I like to take road less travelled: Saransh Goila.” Local People Crossing the river on boat early morning near Gai Ghat.    Dreams* are always reliable, especially when you Dream* to travel to your Dream* place. You can dream endlessly and still remain unsatisfied.  I’ve learnt during my reporting training that there tend to remain a bitter truth “behind the scenes”, let’s call it: chamak-damak . Ok! Let’s come out of over-thinking. Let me take you across my over exhilarated trip to the Land of Ghats. I expected it to be a thrilling experience, but, it turned out to be a mess! Many avoidable mistakes by us and moreover my decision to take along a group of non-enthusiast people who might not have watched Masaan! My mistake, deadly mistake! While it’s a common notion that mostly youngsters would take up adventurous trips and preferably visit Spiti

हरियाणा की सियासत और दिलों पर क्यों हावी बाबा राम रहीम ?

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जब मैंने पहली बार संत बाबा गुरमीत राम रहीम सिंह इंसान का नाम सुना था तो ऐसा सेक्युलर नाम सुन के ही खुशी हो गई थी। लेकिन वो किसी ने कहा है ना कि नाम में क्या रखा है ? काम पता करने के बारे में सोचा तो महीनों बाद टी.वी. पर बाबा को गाना गाते सुन लिया। कुछ साल बाद घर के साथ वाले खाली प्लाट में सालों से पड़ी झाड़ियाँ अचानक साफ कर दी गई। देश में चल रहे तथाकथित निर्मल भारत अभियान से भी ज़बरदस्त सफाई तो मैंने बाबा के समर्थकों को करते हुए देखा। यहाँ मैं यह भी बता दूँ कि हरियाणा का होने के कारण, राम रहीम का यहाँ प्रचार ज्यादा ही है। देश के इसी हिस्से में प्रति वर्ग किलोमीटर सबसे ज्यादा बाबा हैं (पंजाब सहित)। कुछ साल बाद जब मैं दिल्ली कालेज में था तो ब्रेक में ढोल-गानों (और तिरंगों) के साथ डेरे के लोगों को जाते देखा। सभी बाबा की पहली फिल्म MSG के प्रचार में घूम रहे थे। बीच में एक-दो बार सफाई करते या फिल्म के प्रचार के लिए ही बाबा को देखा या सुना। और अब सीधा 16 अगस्त 2017 को जब पंचकुला में सज़ा के तारीख तय हुई। आगे जो कुछ हुआ आपके सामने है। BABA RAM RAHIM IN SAFAI MAHAABHIYAN IN KARNAL (SOU

BAREILLY*2

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SNAPCHAT POST OF 8th JUNE It’s 1 pm and Sun was exactly over my head. At platform no 1 of Karnal railway station I waited for my train which’s one hour late and abruptly an announcement: “May I have your attention please. Train no 12460 from Amritsar to New Delhi (ND) via Ambala Cantt., Panipat, Sabzi Mandi is further delayed by one hour and is expected to reach by 2pm. The inconvenience caused is deeply regretted.” RAMESH KUMAR, THE OLD MAN Uff! It’ll be close. At 4:35 my train for Bareilly (BE) will depart from New Delhi Railway Station (NDLS). It’s 9 th of June & as I’ll reach BE it’ll be 10 June and 10 May’s (Tanmay’s) birthday and this is what for I planned such a long and hectic journey. According to National Train Enquiry System (NTES), if current time is followed, I will reach ND by 4:12. Cool! However, my train arrived Karnal at 2:15 pm and I got my reserved window seat. Waiting in such a humid weather bound me to have a short nap until I started reading Ind

ये काम, "काम" का नही!

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आफिस के दो महीने में जो कुछ देखा, सीखा और जाना सब एक दम नया था और मैं सब इस लिए लिखना चाहता हूँ ताकि आगे आने वाले मेरे जूनियर्स पहले ही यह जान लें कि जैसा हम क्लासरूम में सोचते हैँ वैसा कभी होता नही है। ख़ैर मेरे आफिस ब्रेकअप की दूसरी “ बरसी ” है तो मैंने अपने दो कारण ज़ाहिर करने का फैसला किया है। ना चाहते हुए भी यह दोनों कारण पर्सनल ही हैं क्योंकि “ प्रोफेशनल इज़ पर्सनल ” । निजी इस नाते कि ये दोनों कारण मेरी निजी विचारधारा को चुनौति देते है। पहला कारण: इससे पहले वाले ब्लाग में। गुरू गोबिंद सिंह जी के 350वें प्रकाश उत्सव पर बंगला साहिब से दूसरा कारण : काम : कालेज के ढाई साल में मैंने लिखने, बोलने और पढने की अच्छी प्रैक्टिस की। तो ज़ाहिर सी बात अच्छे काम की ही उम्मीद थी। चैनल छोटा था तो उम्मीद और बढ़ गई। लेकिन मेरे शुभचिन्तकों ने मुझे एक ही सलाह दी की पहले एक बार ऐन्ट्री ले लो बाकी सब अपने आप हो जाएगा। मेरी ट्रेनिंग शुरू होने के तकरीबन एक हफ्ते बाद मुझे असाइनमेंट डेस्क पर शिफ्ट किया गया। काम अच्छा लगा लेकिन यहाँ लिखने का नाम था ही नही और बोलने वाला काम तो छोड़ ही

ये काम, "काम" का नही!

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लिखना तो नही चाहता था लेकिन लिखे बिना रहा भी नही जा रहा। क्योंकि मैं सोशल मीडिया का एक्टिव यूज़र हूँ तो ज़ाहिर सी बात है कि ढिंढोरा पीटने का भी आदी हो चुका हूँ। मैं इस समय बेताब हूँ, बोर हूँ और बेहद आलसी हो चुका हूँ। और इन सभी आदतों पर काबू पाने के लिए लिखता रहता हूँ। यह लेख भी सीधा मेरी डायरी से आ रहा है। तो बात एक बार फिर आफिस की क्योंकि मैं मिस करता हूँ अपने उन बिज़ी डेज़ को। लेकिन कुछ कारणवश मुझे आफिस से "ब्रेकअप" तो करना ही पड़ा। और इसी पर मेरा यह ब्ला्ग। दो महीने में जो कुछ देखा, सीखा और जाना सब एक दम नया था और मैं सब इस लिए लिखना चाहता हूँ ताकि आगे आने वाले मेरे जूनियर्स पहले ही यह जान लें कि जैसा हम क्लासरूम में सोचते हैँ वैसा कभी होता नही है। ख़ैर मेरे आफिस ब्रेकअप की दूसरी “ बरसी ” है तो मैंने अपने दो कारण ज़ाहिर करने का फैसला किया है। ना चाहते हुए भी यह दोनों कारण पर्सनल ही हैं क्योंकि “ प्रोफेशनल इज़ पर्सनल ” । निजी इस नाते कि ये दोनों कारण मेरी निजी विचारधारा को चुनौति देते है। पहला कारण : टी.आर.पी. : मुझे अभी भी याद है अपने फर्सट ईयर का दूसरा स

बाग़ी

With one turmoil of Punjab already ended and another of U(ngovernable)P(ardesh) starting tomorrow, don't forget the Dev-Bhoomi earlier being part of UP itself. As the state of snowbound hills and forests also going to poll tomorrow, let me exemplify you the game of musical chairs in Uttrakhand in short. The state has seen regular political coups, with eight CMs in it's short 16 year history. Amidst of bitter internal rivalries, only 15-20 of 70 seats are not hit by rebellions or crossovers. Atleast 1000 members of both BJP and Congress have crossed over in past 15 days. During this rapid enteries and exits, almost every evening both the parties have been announcing the arrival of "prominent" leaders from the other party and showing them before the media. So before you vote for your representative fighting on Congress ticket you will get to know that just one week before, he/she was from BJP. 

मार्किट में DeMo और मीडिया में मेरा Demo

मैं पहले ही बता दूँ कि मैं ये अपना ब्लाग तब लिख रहा हूँ जब मुझे आफिस से “ ब्रेक-अप ” किए पूरा एक महीना हो चुका है और नोटबंदी के महान कदम ( जैसा फैलाया जा रहा है ) को तीन महीने। मेरा लिए पहली बार आफिस ज्वाइन करने की तारीख हमेशा यादगार रहेगी : 8 नवम्बर 2016 . जी सही पहचाना। वही आठ तारीख और वही शाम आठ बजे का समय जब सभी “ भाईयों और बहनों ” के लिए 500 और 1000 के नोट बंद कर दिए गए थे। लेकिन मैं लक्की निकला। क्योंकि इन दो महीने ( मेरा ट्रेनिंग पिरीयड ) , मोदी सरकार ने पूरी मीडिया इन्डस्ट्री को बिज़ी रखा और चूँकी मेरा चैनल छोटा था तो मुझे ज़्यादा काम करने को मिला। नोटबंदी के फैसले के अगले दो दिन बाद से रोज़ ही कोई-न-कोई चालाक नागरिक नोट बदलवाने का शोर्टकट ढूँढ लेता और रोज़ ही  कभी सरकार के आर्थिक मामलों के सलाहकार, कभी सरकार के वित्त मामलों के सलाहकार, तो कभी ख़ुद वित्त मंत्री प्रेसवार्ता कर नई नोटिफिकेशन जारी कर देते। यही ड्रामा 50 दिनों में 74 बार हुआ। और यही हमारी खबर बन जाती। लेकिन इसी बीच आम नागरिक परेशान और हताश था। कभी कतारों की वजह से तो कभी कंफयूसन की वजह से। और कहीं-न-कहीं